शुक्रवार, 18 मई 2012

आज की बुलेटिन

ब्लॉग बुलेटिन नाम का देखा मैने ब्लॉग
मन माफिक ही टिप्पणी रखता अपने पास
रखता अपने पास,अथित भी सदा बुलाता
मगर अथित का मान नही  यह रख है पाता
बचना इससे यार ,भूल कर अथित न बनाना
अगर हिट हो गई पोस्ट ,उसे फिर वहां न दिखना
vijay

रविवार, 22 अप्रैल 2012

पहले मतदान सुधारों ........

परंपरा इस देश की बदल सके न कोय
बीबी लगाती दाव में,सदियों से यह होय
सदियों से यह होय,उन्हें हम धर्मराज हैं कहते 
बेच  रहे जो  देश उन्हें फिर गाली क्यूँ है  बकते?
अगर  बदलना देश तो  यह इतिहास सुधारों
दुर्योधन को मरो पर युधि को भी नहीं सराहो
लोकतन्त्र  में  राजतन्त्र ही छुपा हुआ है,
कुछ करना है तो पहले मतदान सुधारों 
vijay 

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

रिश्ते टूट जाते हैं......

रिश्ते टूट जाते हैं
हाँ
नहीं टूटता
मौन संबाद
जो चलता है
निरंतर
जीवन भर
विजय

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

अरे तू भी बोल्ड हो गई,और मै भी......




 साथियो जरा फिल्मी  अंदाज में इन्हें भी  गुनगुनाइये

[१]
आया न मुझको ब्लॉग ये लिखना,फिर भी इसे हम लिखते है.
कोई नही  जब  इसको   पढता ,  खुद ही  कसम से   पढते  हैं 


 [२]

एक हमें ब्लॉग की लिखाई मार गई

दूसरी यह बीबी की लड़ाई मार गई

तीसरी अग्रेजो की पढाई मार गई

बाक़ी जो कुछ बचा तो ,तन्हाई, मार गई ,महगाई  मार गई.
 
[३]

अजी पोस्ट करके,कहाँ जा रहे हो

यहाँ टिप्पणी क्या नहीं पा रहे हो 


[४]

एक दो तीन, चार पाच छह सात आठ  नव दस ग्यारह बारह  तेरा

 तेरा करू रुक रुक के मै,इंतज़ार ,आजा मुझे टिपिया दे यार 

[५]
कलम जो चलती
कविता ही लिखती
कसम खुदा की ,मेरी बीबी भी न पढती


[६]
 
आज कल तेरे मेरे ब्लॉग के चरचे,हर जबान पर
अरे तू भी बोल्ड  हो गई,और मै भी बोल्ड हो गया

विजय


रविवार, 15 अप्रैल 2012

आधे अधूरे सच के साथ .....



आधे अधूरे सच के साथ
जिंदगी जीते हैं
या
छलते हैं खुद को
कभी सोच के देखा है?
किसी पार्क की कोनें में
बैठ कर
जिंदगी के तानें -बानें बुनना
कितना आसान होता है
और कितना मुश्किल होता है-
हकीकत का सामना करना
सड़क  में हाथ फैलाये
 मासूम हाथों में चन्द सिक्के ड़ाल
या
अनदेखा कर चले जाना
घर में
बच्चे के हाथों  में टाफी पकड़ा
गोदी में उठा ,सीने से लगा
सुखद अनुभूति में खोना
दोनों में अंतर या समानता का बोध
कभी प्रश्न बनके
अंतरमन के
गलियारे से गुजरा
मानवता के महान शिखर में
खुद को खड़ा करते वक्त
पड़ोस के गलियारे में
बूढी हड्डियों को समेटे
 रास्ता पार करते आदमी को
अनदेखा कर
पिता के गुठनों के दर्द से 
परेशान
आधी रात
डाक्टर के दरवाजे में
अपने हाथों
की
दस्तक की थाप में
उस लाचार के पदों की
आवाज की गूँज
सुनायी दी
उत्तर देना है
हाँ या न में
खुद को
जीवन की परिक्ष
ा में
उत्तीर्ण करनें के लिये
विजय


शनिवार, 14 अप्रैल 2012

मै भी आया दोस्तों .....

[1]मै   भी  ब्लॉगर  बन  गया ,रोज करुगाँ  पोस्ट
प्यार का मक्खन इसे लगाये,बन जायेगा टोस्ट 
[2] मै भी आया दोस्तों ले कर यह पैगाम
प्यार करें बस प्यार का नहीं लागायें दाम
vijay