रविवार, 22 अप्रैल 2012

पहले मतदान सुधारों ........

परंपरा इस देश की बदल सके न कोय
बीबी लगाती दाव में,सदियों से यह होय
सदियों से यह होय,उन्हें हम धर्मराज हैं कहते 
बेच  रहे जो  देश उन्हें फिर गाली क्यूँ है  बकते?
अगर  बदलना देश तो  यह इतिहास सुधारों
दुर्योधन को मरो पर युधि को भी नहीं सराहो
लोकतन्त्र  में  राजतन्त्र ही छुपा हुआ है,
कुछ करना है तो पहले मतदान सुधारों 
vijay 

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति,.
    विजय जी आपकी फरमाइश पूरी कर दी है,

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...

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  2. महाराज.....एक पहचान से ही टिपियाया करिये,आसानी रहेगी पहचानने में !

    और ठोंक-बजाओ ,अच्छा लिख लोगे !

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    उत्तर
    1. मानी नेक सलाह आपकी ,नाम बदल फिर डाला
      पीने वाले कही आ गए,मुझे समझ मधु -शाला है

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  3. सार्थक अर्थ पूर्ण कुछ करने को उकसाती सौदेश्य रचना .बधाई .

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