परंपरा इस देश की बदल सके न कोय
बीबी लगाती दाव में,सदियों से यह होय
सदियों से यह होय,उन्हें हम धर्मराज हैं कहते
बेच रहे जो देश उन्हें फिर गाली क्यूँ है बकते?
अगर बदलना देश तो यह इतिहास सुधारों
दुर्योधन को मरो पर युधि को भी नहीं सराहो
लोकतन्त्र में राजतन्त्र ही छुपा हुआ है,
कुछ करना है तो पहले मतदान सुधारों
बीबी लगाती दाव में,सदियों से यह होय
सदियों से यह होय,उन्हें हम धर्मराज हैं कहते
बेच रहे जो देश उन्हें फिर गाली क्यूँ है बकते?
अगर बदलना देश तो यह इतिहास सुधारों
दुर्योधन को मरो पर युधि को भी नहीं सराहो
लोकतन्त्र में राजतन्त्र ही छुपा हुआ है,
कुछ करना है तो पहले मतदान सुधारों
vijay
सुंदर प्रस्तुति,.
जवाब देंहटाएंविजय जी आपकी फरमाइश पूरी कर दी है,
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
महाराज.....एक पहचान से ही टिपियाया करिये,आसानी रहेगी पहचानने में !
जवाब देंहटाएंऔर ठोंक-बजाओ ,अच्छा लिख लोगे !
मानी नेक सलाह आपकी ,नाम बदल फिर डाला
हटाएंपीने वाले कही आ गए,मुझे समझ मधु -शाला है
सत्य वचन...
जवाब देंहटाएंअनु
सार्थक अर्थ पूर्ण कुछ करने को उकसाती सौदेश्य रचना .बधाई .
जवाब देंहटाएंविजय जी,...आप कहाँ हैं,...आइये इन्तजार है
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....